नीम का कृषि में महत्व

 ( Importance of Neem in Agriculture ) 



     

                     खेती में उर्वरकों एवं रसायनों ( Pesticides , fungicides . weedicides ) के अन्धाधुन्ध प्रयोग से हमें सोचने के लिए यह विवश कर दिया है कि निश्चय ही ये रसायन पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं , उदाहरण के तौर पर आज सब्जियों ( बैंगन , टमाटर , मिर्च , आलू आदि ) , फलों ( केला , आम ) , कपास , गन्ना आदि में इन रसायनों का अन्धाधुन्ध में प्रयोग किया जा रहा है . आखिर सोचो कि किस राह पर जाएगी यह खेती ? यदि कृषि रसायनों का उपयोग ऐसे ही बढ़ता रहा , तो अगली पीढ़ी तक भूमि के घटते उपजाऊपन की समस्या तो होगी ही , साथ ही मानव जीवन भी असुरक्षित हो आएगा . अतः अब आवश्यक है कार्बनिक खेती की , जिसमें नीम के उत्पाद का भूमि एवं फसलों में प्रयोग का , कीड़े - मकोड़ों को मारने की ।

             निश्चय ही नीम के अनेक उपयोग हैं , जैसे - दांतुन के रूप में दाँत साफ करने एवं मुँह के रोग विकार हेतु छाल को कूट - पीस कर सवा चम्मच सुबह - सायं एक माह तक लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं ; मलहम के रूप में , घाव सुखाने , अनाज ( गेहूँ , चावल , दालों ) सरक्षा हेतु नीम के पत्तों का प्रयोग पई , घुन , काटो का रोकथाम , कपड़ों को सरक्षित रखने में नीम के पत्तों का प्रयोग पत्तियों को पानी में डालकर नहाने से लाभ आदि . इन सबको देखते हुए देश में नीम के तेल का उत्पादन ( सन् 2000 में ) 12 , 000 टन तक पहुँच गया है , जिसके प्रमुख उत्पादक राज्य - उ . प्र . , म . प्र . . आन्ध्र प्रदेश एवं ओडिशा हैं 

‌नीम के तेल की प्रमुख मंडियाँ आन्ध्र प्रदेश में गुन्टूर व विजयवाडा और म . प्र . में रायपुर में हैं . नीम के तेल का भाव औसतन ₹2000 - 2500 प्रति कुण्टल होता है जो माँग व पूर्ति के अनुसार घटता - बढ़ता रहता है । 

‌नीम ( Azardirachta indica ) की संस्कृत शब्द Nimba से उत्पत्ति है जिसका अर्थ बीमारी से छुटकारा ( Reliever from sickness) पाना है ए एजाडिरेक्टीन तत्व की मात्रा 3-8% तक निबोली से प्राप्त तेल में मिलती है ।