कीट नियन्त्रण 

मटर के प्रमुख कीट तथा उनसे होने वाली हानि एवं रोकथाम के उपायों के बार में में विवरण नीचे दिया गया है --

तना छेदक ( Pea stem fly ) -

           इस कीट की मादा पौर्धा के कोमल तनों और शार में छेद करके अण्डे देती हैं । अण्डे से गिंडार निकलकर तने के अन्दर - अन्दर खाते हुये नीचे है । ओर चली जाती है । सबसे अधिक हानि पौधों की शुरू की अवस्था में होती है जिसके कारण पौधे सूखकर नष्ट हो जाते हैं । जब फसल बड़ी हो जाती है तो यह कीड़ा फसल को हानि नहीं पहुंचा पाता । इस कीट की रोकथाम के लिये फसल बोने के समय 10 किलोग्राम थिमेट 10 जी , ग्रेन्युल्स प्रति हैक्टेयर की दर से खेत की मिट्टी में मिला देना चाहिये । जब फसल लगभग 10 - 15 सेमी ऊँचाई की हो जाये तो नुवाक्रान नामक दवा का छिड़काव कर सकते हैं । एक मिलीलीटर दवा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोलकर 700 से 800 लीटर घोल का प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये । 

पत्ती में सुरंग बनाने वाला कीट ( Leaf miner )-

         कीट की सुंडियाँ पत्तियों में सुरंग बनाकर हरा पदार्थ खाती हैं जिसके कारण पत्तियों पर सफेद - सफेद आकार की टेढ़ी - मेढ़ी लाइनें । से बन जाती हैं । इस कीट के नियन्त्रण के लिये 1 . 5 लीटर साइपरमेथ्रिन अथवा एक लीटर मेटासिस्टोक्स 25 ई० सी० या एक लीटर रोगोर 30 ई० सी० को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करना चाहिये । पहला छिड़काव करने के 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करना चाहिये । 

माहू या चॅपा ( Aphids ) 

      ये हल्के हरे रंग के छोटे - छोटे कीट होते हैं । जब मौसम नम् होता है तो इन कीटों की संख्या अधिक बढ़ जाती है । इस कीट के डिम्ब तथा प्रौढ़ दोनों पौधों के कोमल तथा उगते हुये भागों तथा नई फलियों पर आक्रमण करते हैं और उनका रस चूस लेते हैं । इस कीट का अधिक प्रभाव होने पर प्रभावित भाग सूख जाते हैं और फलियाँ भी नहीं बनती है । इस कीट के नियन्त्रण के लिये भी उन सब दवाओं का प्रयोग किया जा सकता है जिसका प्रयोग । पत्ती में सुरंग बनाने वाले कीट के नियन्त्रण के लिये किया जाता है । 

फली छेदक ( Pod borer )

                  इस कीट की सुंडियाँ हरे रंग की होती हैं जो फलियों में छेद करके अन्दर घुस जाती हैं और दाने खा जाती हैं तथा फलियों को खराब कर देती हैं । इस कीट के नियन्त्रण के लिये 2 किलोग्राम मेलाथियान 50 प्रतिशत घुलनशील ) को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करना चाहिये । 

कटाई या मॅड़ाई -

       मटर की किस्म के अनुसार हरी फलियाँ अलग - अलग समय पर तैयार होती हैं । फलियाँ 10 - 12 दिन के अन्तर पर 3 - 4 बार तोडनी चाहिये । जब फलियों में दाने १ आकार के हो जायें तो उनकी तुड़ाई कर लेनी चाहिये । फलियों की तुड़ाई में देर करने से दानों को मिठास कम हो जाती है । फलियों को साधारण झटके से सावधानी के साथ तोडना चाहिये ताकि फलियाँ फटने न पायें । दाने के लिये बोई गई किस्में मार्च तक पक कर तैयार हो जाती हैं । पकी हुई फसल की कटाई शीघ्र ही कर लेनी चाहिये अन्यथा खेत में दाने गिर जाने की सम्भावना बनी रहती है । गहाई बैलों द्वारा दाँय चलाकर की जा सकती है ।

 उपज -

         उन्नत विधि से मटर की खेती करने पर शीघ्र तैयार होने वाली किस्मों से 60 - 70 क्विटल तथा देर से तैयार होने वाली किस्मों में 80 - 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हरी फलियों की उपज मिल जाती है । दाने के लिये बोई गई किस्मों से लगभग 20 - 25 क्विटल दाने की उपज प्रति हैक्टेयर मिल जाती है ।


कृषि में योगदान, बीजोत्पादन (Seed Production) ... Reading