खाद तथा उर्वरक



                 मटर की अच्छी उपज लेने के लिये खेत की तैयारी के समय ही , यदि उपलब्ध हो सके । 200 क्विटल गोबर की सड़ी खाद प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में अच्छी प्रकार से मिला दे चाहिये । इसके अतिरिक्त 15 - 20 किग्रा० नाइट्रोजन , 45 - 50 किग्रा० फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से उर्वरकों के रूप में देनी चाहिये । पोटाश की मात्रा मिट्टी की जांच के आधार पर तय है जाये तो अधिक लाभप्रद रहता है । सभी उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही बीज की कतार से 5 सेमी० बगल में तथा 5 सेमी० बीज की सतह से नीचे केंड़ में डालकर दे देनी चाहिये । 

सिंचाई एवं जल निकास-

                          मटर की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती । यदि मटर की बुवाई पलेवा करने के बाद उचित नमी में की गई है तो पहली सिंचाई मटर में फूल निकलते समय करनौ । चाहिये । सिंचाई करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मटर के खेत में पानी एक समान लगे । खेत में कहीं भी पानी इकट्ठा न होने पाये । यदि किसी क्यारी में अधिक पानी लग जाये तो । उसे दूसरी क्यारी में काटकर निकाल देना चाहिये । मटर के खेत में जिस स्थान पर भी अधिक पानी लग जायेगा वहीं पौधे पीले पड़ जायेंगे और उनमें फलियाँ भी कम लगेगी । अत : मटर के खेत में जल - निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिये ताकि फालतू पानी को खेत से बाहर निकाला जा सके । यदि शीतकालीन वर्षा न हो तो फलियों में दाना बनते समय दूसरी सिंचाई कर देनी चाहिये । यह सिंचाई भी बहुत हल्की होनी चाहिये । 

खरपतवार नियन्त्रण -

                         मटर की फसल में शुरू के 40 - 50 दिन तक खरपतवारों पर नियन्त्रण रखना आवश्यक होता है । इसके बाद मटर के पौधे भूमि को पर्ण रूप से ढक लेते हैं और खरपतवार पनपने नहीं पाते । अतः बुवाई के 30 - 40 दिन के भीतर एक बार खुप से निराई - गुड़ाई करके खरपतवार नष्ट कर देने चाहिये । जिन स्थानों पर खरपतवारों की समस्या अधिक रहती है वहाँ दो बार निराई करने की आवश्यकता पड़ जाती है । मटर की फसल में खरपतवारों को रसायनों के प्रयोग से भी नियंत्रित किया जा सकता है । बेसालीन की 0 - 75 किग्रा० ( सक्रिय अवयव ) मात्रा को 00 लीटर पानी में घोलकर खेत की अन्तिम तैयारी के बाद समान रूप से छिड़क देना । है और इसके बाद हैरो आदि से भूमि की ऊपरी सतह में मिला देना चाहिये । ऐसा करने पर खरपतवार नहीं उग पाते हैं । 

    रोग नियन्त्रण- 

                मटर की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों के लक्षण तथा उनकी रोकथाम के उपाय नीचे दिये गये हैं | 

    बीज एवं जड़ सड़न ( Seed and root rot ) — 

                      यह रोग पिथियम ( Pythium ) वर्ग के फफूंद के कारण फैलता है । इस रोग के कारण या तो बीज सड़ जाते हैं या उगने के बाद टे - छोटे पौधे ही मर जाते हैं । मटर की फसल में साधारणतया जो कम अंकुरण पाया जाता है , के लिये यह रोग एक मुख्य कारण है । अधिक नमी तथा भारी भूमि में यह रोग अधिक लगता है । 

रोकथाम के उपाय -

 1 , इस रोग की रोकथाम के लिये बीज बोने से पहले किसी एफेदनाशक दवा जैसे — थायराम या कैप्टान से 2 . 5 ग्राम रसायन प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिये । 
2 खेत में जल - निकास का उत्तम प्रबन्ध होना चाहिये । 

बुकनी या चूर्णिल आसिता ( Powdery mildew )-

                    इस रोग के लक्षण पहले पत्तियों पर और उसके बाद पौधों के अन्य हरे भागों पर दिखाई पड़ते हैं । इस रोग में पत्तियों के ऊपर सफेद भभूत ( चूर्ण ) सा जम जाता है और पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं , डण्ठल और पत्तियों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं । 

  रोकथाम के उपाय-

           इस रोग की रोकथाम के लिये 3 किलोग्राम घुलनशील गन्धक जैसे — इलोसाल या सल्फैक्स को 1000 लीटर जल में घोलकर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव कों । कैराथेन ( 0 - 2 प्रतिशत ) का छिड़काव भी लाभदायक पाया गया है ।

 मृद्रोमिल आसिता ( Downy mildew ) —

                  इस रोग के लक्षण तीसरी या चौथी पत्ती आने पर दिखाई देने लगते हैं । पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे बन जाते हैं । ठीक इन्हीं धब्बों के नीचे पत्तियों की निचली सतह पर फफूद की रुई के समान मुलायम बढ़वार प्रातः काल | स्पष्ट दिखाई देती है । पत्ती को ऊपर की सतह पीली पड़ जाती है और बाद में पत्तियाँ सूख जाती हैं ।

 रोकथाम के उपाय - 

1 . रोगी फसल का मलवा जला दें । 
2 . दो - तीन वर्षीय फसल चक्र अपनायें । 
3 . इंडोफिल एम - 45 नामक दवा के 0 . 25 प्रतिशत घोल के 15 दिनों के अन्तर पर 2 - 3 छिड़काव करने चाहिये । 

 गेरुई या रतुआ ( Rust ) -

            इस रोग के कारण पत्तियाँ , तने , पर्णवृन्त एवं फलियों पर पीले , । गाल या लवे ल या लम्बे धब्बे समूहों में पाये जाते हैं । यह धब्बे पत्तियों की दोनों सतह पर बनते हैं । यह पथ्य चूर्ण की तरह हल्के भूरे रंग के होते हैं । बाद में इनका रंग गहरा भूरा या काला हो जाता है ।

रोकथाम के उपाय-

     1. इस रोग के रोकथाम के लिए 2.5 किलोग्राम इंडोफिल M-45 को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयेर की दर से 3 से 4 बार छिड़काव करना चाहिए।
   2. कटाई के बाद खेत में रोगग्रस्त अवशेषों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए ।


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