मटर की खेती 


वानस्पतिक नाम -   Pisum sativum ( पाइसम सेटाइवम ) कुल ( Family ) -      Fabaceae ( फेबेसी )



 मटर विश्व बहुत ही महत्वपूर्ण दाल वाली फसल है । मटर का  प्रयोग सब्जी तथा दाल दोनों रूपों में किया जाता है । सूखी मटर को दाल और सूप के रूप में प्रयोग किया जाता है । सब्जी वाली मटर की गणना ऊँचे स्तर वाली सब्जियों में की जाती है । इसके ताजे दानों को पनीर, आलू की सब्जी, तथा अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती है । ताजे हरे बीजों की डिब्बा बन्दी करके उस समय उपयोग में लाते हैं जबकि बाजार में ताजी मटर उपलब्ध नहीं हो पाती । मटर के दानों को सुखाकर रख लिया जाता है जो कि बाद में चाट तथा भिगोकर सब्जी के रूप में भी खाया जाता है । मटर से प्राप्त सूखे दानों में से लगभग 22.5 % प्रोटीन होती है । मटर के ताजे हरे दानों में भी प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा ( 7 . 2 प्रतिशत ) होती है । इसमें अत्यधिक विटामिन तथा खनिज लवण भी प्रचुर मात्रा में होते हैं । मटर में गंधक तथा फॉस्फोरस अत्यधिक मात्रा में होता है । मटर के दाने का उपयोग पशुओं के रातब ( Concentrate ) के रूप में भी किया जाता है । मटर के हरे पौधों का प्रयोग हरी खाद तथा जानवरों के चारे के  रूप में भी  प्रयोग किया जाता है ।

 क्षेत्रफल और उत्पादन केन्द्र-


 मटर पुरे विश्व की सबसे महत्वपूर्ण दाल वाली फसल है । जो कि संसार के लगभग 10.5 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल में मटर की खेती की जाती है जिससे लगभग 13 मिलियन टन उत्पादन होता है । विश्व में मटर उगाने वाले प्रमुख देश चीन, अमेरिका, भारत ,रूस, तथा इथियोपिया है। क्षेत्रफल एवं उत्पादन दोनों ही दृष्टिकोण से चीन का संसार में प्रथम स्थान है । हमारे भारत में लगभग 5.83 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में मटर की खेती की जाती है । जिससे लगभग - 48 लाख टन मटर के दाने का उत्पादन होता है । भारत में मटर उगाने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है । देश में मटर के कुल उत्पादन का लगभग 60 प्रतिशत उत्पादन अकेले उत्तर प्रदेश में ही होता है । उत्तर प्रदेश में लगभग 4 . 34 लाख हैक्टेयर भूमि में मटर की खेती की जाती है जिससे लगभग 4 . 71 लाख टन उत्पादन मिलता है । मटर के क्षेत्रफल की दृष्टि से आगरा मण्डल का प्रथम स्थान है । इसके बाद गोरखपुर , फैजाबाद तथा झाँसी मण्डल आते हैं । प्रदेश में अलीगढ़ जिले में मटर की सबसे अधिक क्षेत्रफल में खेती की जाती है । उसके बाद बस्ती , एटा , आजमगढ़ तथा इटावा का नम्बर आता है । 

जलवायु -


मटर की फसल के लिये शुष्क तथा ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है । गर्म क्षेत्रों में इसकी बढ़वार ठीक से नहीं हो पाती । यही कारण है कि भारत के उत्तरी और मध्य क्षेत्रों के दानी भाग में मटर की खेती शीत काल में ही की जाती है । गर्मियों में यह केवल पहाडी क्षेत्रों हा उगायी जा सकती है । मटर के बीज के जमाव के लिये 22° सेल्सियस तापमान इष्टतम ता पौधों के उचित विकास तथा अच्छी पैदावार के लिये औसत तापमान 13° से 18° सल्सियस होना चाहिये । पाले की अपेक्षा तापमान में वृद्धि से मटर की फसल को अधिक हानि पहुंचती है । फूल आने की अवस्था में प मटर में फूल आने के समय वातावरण ॥ अवस्था में पाले से अधिक हानि होने की सम्भावना रहती है । यदि समय वातावरण में नमी बढ़ जाती है तो फसल में चूर्णित आसिता ( Powdery mildew ) का प्रकोप बढ़ जाता है । 

भूमि -

मटर की अच्छी उपज के लिए मटर की खेती बलुई दोमट से लेकर मटियार वाली भूमि तक में की जा सकती है । लेकिन अच्छे जल - निकास वाली दोमट भूमि , जिसका पी० एच० लिये सर्वोत्तम रहती है । उन्नत किस्में बता बलुई दोमट से लेकर मटियार भूमि तक में की जा सकती है लेकिन अच्छे मिट भूमि , जिसका पी० एच० मान 6 से 7 . 5 के बीच हो , मटर की खेती के लिये सर्वोत्तम रहती है।
 
फसल चक्र, खेती की तैयारी, बीज और बुवाई ... Reading